कभी नयनों में आते थे, सपनों की तरह, अब जीवन नैया में हो ,पतवार की तरह। कभी नयनों में आते थे, सपनों की तरह, अब जीवन नैया में हो ,पतवार की तरह।
सपने सच होते हैं, कुछ मेरे भी हुए, देखे थे रातो में, सबेरे वो पूरे हुए। जीना तो च सपने सच होते हैं, कुछ मेरे भी हुए, देखे थे रातो में, सबेरे वो पूरे हुए।...
चाय बनाने की प्रक्रिया पर कविता। चाय बनाने की प्रक्रिया पर कविता।
दूर जाकर तुम मुझे भूल जाते हो, तुम्हें क्या पता तुम कितना याद आते हो। दूर जाकर तुम मुझे भूल जाते हो, तुम्हें क्या पता तुम कितना याद आते हो।
क्या नारी हो? क्या अब भी गुलामी में रहती हो? उबल जाओ, उफ़न जाओ! तप्त बन जाओ...!! क्या नारी हो? क्या अब भी गुलामी में रहती हो? उबल जाओ, उफ़न जाओ! तप्त बन जाओ.....
तृप्त करके सबको, ख़ुद को अमर कर जानी है तृप्त करके सबको, ख़ुद को अमर कर जानी है